तरल हो जाना
सरलता से तरल हो जाना
सहजता को परिभाषित नहीं करता
उसी अपरिभाषित सहजता के साथ
तरल हो जाना चाहती हूँ
पात्र के अनुरूप ही
उनके किनारों में बिना कोई दाग बने
बिना उनके किनारों से छलके
आकार हो जाना चाहती हूँ
नहीं जाना चाहती तरलता के
उस सत्य से बाहर
जहाँ तृप्त होने की तृष्णा को
मरिचिका का आभास हो
रहना चाहती हूँ
उसी सत्य के अदृश्य तह में ही
जहाँ तृष्णा को भी
तृप्त होने का पूर्ण विश्वास हो
अनामिका चक्रवर्ती अनु