Wednesday, January 31, 2018
आमंत्रण
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कोई आमंत्रण तो नहीं दिया था
फिर क्यों आये तुम जीवन में
बीज प्रेम का ,
क्यों बोया मेरे मन में
स्वीकृति दी जब स्वयं को
तुम में घुल जाने
मूक हुए क्यों
तब तुम छल में
न पूर्ण आते हो
न पूर्ण जाते हो
क्यों विश्वास को
व्यथा पर प्रश्न बनाते हो
मंथन ये कैसा किया प्रेम का
बनाकर अमृत मुझको,
विष क्यों दिया जीवन में
© अनामिका चक्रवर्ती अनु
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कोई आमंत्रण तो नहीं दिया था
फिर क्यों आये तुम जीवन में
बीज प्रेम का ,
क्यों बोया मेरे मन में
स्वीकृति दी जब स्वयं को
तुम में घुल जाने
मूक हुए क्यों
तब तुम छल में
न पूर्ण आते हो
न पूर्ण जाते हो
क्यों विश्वास को
व्यथा पर प्रश्न बनाते हो
मंथन ये कैसा किया प्रेम का
बनाकर अमृत मुझको,
विष क्यों दिया जीवन में
© अनामिका चक्रवर्ती अनु
तुम थे या नहीं, हो या नहीं
प्रश्न करती रही ।
विरान बंजर खंडहर ,
सदियों से कोई बसा नहीं जिसमें ,
गूँजी न हो कोई आवाज ।
या ऐसी कोई सड़क
लंबी दूरी तक जाते हुये कहीं
इस तरह थम गई,
जैसे उसके आगे कोई दुनियाँ ही नहीं है।
एक जला सा पन्ना,
जिसमें कुछ अक्षर नजर तो आये
पर कुछ कह नहीं पाये
जैसे वो खुद न जले ,
जली हो सिर्फ उनकी जुबान
मैं तुम्हारे होने को महसूस करती रही।
नदी किनारे सोई रेत की एक नदी ,
चट्टानों को निहारती हुई,
अपने सीने पर कदमों के चिन्ह संभालती हुई
मैं तुम्हें महसूस करती रही
तुम थे या नहीं ।
©अनामिका चक्रवर्ती अनु
Tuesday, January 30, 2018
_शायद--- डायरी के सुस्ताते पन्नों से ........
कभी कभी ज़िन्दगी निभाने के लिये ज़िन्दगी कम पड़ने लगती है और समय रेत की तरह हाथ से फिसल जाता है ,
और हम आधे अधुरे से दुनियाँ से चले जाते है और अपने पीछे छोड़ जाते है "शायद"
सच ये "शायद" भी बड़ी अजीब चीज होती है कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है।
क्योंकि "शायद" को लेकर इंसान अपने में नहीं रहता। इसी बात को खुद से जोड़कर कि यदि ऐसा होता तो "शायद" यदि वैसा होता । अपनी पूरी ज़िन्दगी बिताता है, उसके दिमाग पर "शायद" की परत चढ़ जाती है और वो कुछ भी निश्चित करने में सक्षम नहीं हो पाता ।
हर घटना "शायद" की भेंट चढ़ी होती है। हर परिवर्तन को "शायद" से जोड़ दिया जाता है।
यहाँ तक परम सत्य मृत्यु भी "शायद" की एक गाँठ अपने पीछे छोड़ जाती है।
फिरभी यही वो "शायद" होता है जो जीने की वजह भी देता है...... एक उम्मीद देता है..........
और हम आधे अधुरे से दुनियाँ से चले जाते है और अपने पीछे छोड़ जाते है "शायद"
सच ये "शायद" भी बड़ी अजीब चीज होती है कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है।
क्योंकि "शायद" को लेकर इंसान अपने में नहीं रहता। इसी बात को खुद से जोड़कर कि यदि ऐसा होता तो "शायद" यदि वैसा होता । अपनी पूरी ज़िन्दगी बिताता है, उसके दिमाग पर "शायद" की परत चढ़ जाती है और वो कुछ भी निश्चित करने में सक्षम नहीं हो पाता ।
हर घटना "शायद" की भेंट चढ़ी होती है। हर परिवर्तन को "शायद" से जोड़ दिया जाता है।
यहाँ तक परम सत्य मृत्यु भी "शायद" की एक गाँठ अपने पीछे छोड़ जाती है।
फिरभी यही वो "शायद" होता है जो जीने की वजह भी देता है...... एक उम्मीद देता है..........
ज़िन्दगी में कोई दौर तो ऐसा आता होगा
जब खुद के लिये तु खुद को माँगता होगा
जब खुद के लिये तु खुद को माँगता होगा
©अनामिका चक्रवर्ती अनु
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