Tuesday, January 30, 2018

_शायद--- डायरी के सुस्ताते पन्नों से ........
कभी कभी ज़िन्दगी निभाने के लिये ज़िन्दगी कम पड़ने लगती है और समय रेत की तरह हाथ से फिसल जाता है ,
और हम आधे अधुरे से दुनियाँ से चले जाते है और अपने पीछे छोड़ जाते है "शायद"
सच ये "शायद" भी बड़ी अजीब चीज होती है कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है।
क्योंकि "शायद" को लेकर इंसान अपने में नहीं रहता। इसी बात को खुद से जोड़कर कि यदि ऐसा होता तो "शायद" यदि वैसा होता । अपनी पूरी ज़िन्दगी बिताता है, उसके दिमाग पर "शायद" की परत चढ़ जाती है और वो कुछ भी निश्चित करने में सक्षम नहीं हो पाता ।
हर घटना "शायद" की भेंट चढ़ी होती है। हर परिवर्तन को "शायद" से जोड़ दिया जाता है।
यहाँ तक परम सत्य मृत्यु भी "शायद" की एक गाँठ अपने पीछे छोड़ जाती है।
फिरभी यही वो "शायद" होता है जो जीने की वजह भी देता है...... एक उम्मीद देता है..........
ज़िन्दगी में कोई दौर तो ऐसा आता होगा
जब खुद के लिये तु खुद को माँगता होगा
©अनामिका चक्रवर्ती अनु

6 comments:

  1. शायद.... हाए.... कभी कभी आपकी लिखी कुछ पंक्तियों में बहुत अजीब आकर्षण होता है। हम उस सम्मोहन में बंध से जाते हैं ।
    शायद.... शायद भी बहुत अजीब चीज है, इंसान को इंसान भी नहीं रहने देता कभी कभी। किसी और ही दुनिया में धकेल देता है।

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    1. :)
      ये 'शायद' है ही ऐसा, कोई भी इसके मोह से बच नहीं पाता

      शुक्रिया ब्लॉग में आने का

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  2. सचमुच दिमाग पर चढ़ी शायद की परत और इसका अजब सम्मोहन से छुटकारा पाना क्या आसान है!कदाचित नही लेकिन यह भी सत्य है की यह उम्मीदोँ को जीवंत बनाये रखता है। आपकी लेखनी और विचार दोनो ही लीक से थोडा अलग लेकिन पठनीय होते है । 💐👍💐

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  3. आपकी मूल्यवान प्रितिक्रिया का बहुत बहुत आभार
    अशेष धन्यवाद

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  4. यह ब्रह्मांड संभावनाओं से भरा पड़ा है, अच्छी भी बुरी भी,जिसका कोई अन्त नहीं है। इसी से कोई भी जीवन पूर्ण नहीं होता। इस'शायद'के जाल से हम जल्दी निकल नहीं पाते।
    'शायद' को आपने बड़ी खूबसूरती और गूढ़ता से प्रस्तुत किया है।

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  5. आपका तहेदिल से शुक्रिया विमल जी

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