Saturday, September 3, 2022

 सुख अलग अलग रंगों में ही मिलता है

जो कभी कभी छूटकर कहीं दाग भी बन जाता है

लेकिन अगर रंग पक्के मन का हो तो दाग कभी नहीं लग सकता

परन्तु लोग पक्के न होने के डर से सुख सफेद रंग में चाहते हैं

जबकि सफेद पर लगा दाग अधिक बुरा लगता ।



अनामिका चक्रवर्ती अनु

Friday, August 14, 2020

 जिंदगी को जी भरके है अगर जीना

तो आँखों में  पानी बचाकर  रखना


#अनामिका_चक्रवर्तीअनु

Saturday, October 26, 2019

क्या कभी आपको मिला कोई ऐसा?
====================

ये दुनिया इसलिए भी खूबसूरत है क्योंकि
बिना किसी संबंध और बिना किसी रिश्तेदारी के भी
दुनिया में कहीं न कहीं कुछ खास लोग
कुछ लोगों के लिए बने होते हैं
जो जीवन में बेवज़ह , बेमतलब ही
दिली खुशी और सुकून दे जातें हैं

और शायद यही वो वज़ह है कि
हम पहली बारिश की बूंदों की ठंडक को
महसूस कर पाते हैं
पहली बार खिले हुए किसी फूल की खुशबू को
आँखों से छू पाते हैं।



अनामिका चक्रवर्ती अनु

एक सोच में हम तुम

तुम्हें न सोचूँ
ये मैं सोच भी नहीं सकती
मेरी सोच तुम तक पहुँचे
ये तुम होने नहीं देते
तुम मुझे सोचते हो
ये मैं जान नहीं पाती
मैं तुम्हें सोचती हूँ
ये तुम जानना नहीं चाहते
मेरी सोच न तुम तक जाती है
न तुम्हारी सोच मुझ तक आती है
मगर कुछ तो बात है
इस सोच से न तुम निकल पाते हो
न मैं निकल पाती हूँ

अनामिका चक्रवर्ती अनु

Sunday, April 28, 2019

उम्र के एक हिस्से में
दियासलाई रखी हुई थी
किसी रंगीन कपड़े में
लिपटी हुई जिदगी की तरह

आग किसी बारूद की शक्ल में
अपनी ही मादक गंध के
आकर्षण में डूबी थी
जो कपड़े की हर एक
सलवट में समाई थी

जलकर राख में ही
तब्दील हो जाना तय था
मगर जलने से पहले तपना था
किसी खरे सोने की तरह
ऐसा तपना मानों उम्र के हिस्से में रखी
दियासलाई की हर एक तिली
किसी उम्र की तरह जली हो
और रंग चटका हो इस तरह
जैसे डूबते हुए सूरज ने अपने
पंख फैला दिए हों आसमां के
आखिरी तारीख पर जाकर।


#अनामिका_चक्रवर्तीअनु



Tuesday, October 2, 2018

   तुम्हारी बातें

जब बार बार एक व्यवहार पलट पलट कर आता है प्रेम के अच्छे व्यवहार के अंतराल में तो प्रेम कहीं ओझल हो जाता है।
ऐसा लगता है जैसे प्रेम कहीं है ही नहीं, था ही नहीं जो जी रहे थे अब तक प्रेम समझकर वो कुछ और ही था परन्तु क्या ? ये समझ नहीं आता कि क्या था हमारे बीच ।

अजीब कशमकश है अचानक से आया परायापन प्रेम को जैसे छीन लेता है।
 यही है तो इस रिश्ते की सच्चाई क्या है वो कौन सी डोर है जो बाँधे हुए है। कौन सी तलब है जो मिटती नहीं बल्कि बढ़ती जाती है।

ऐसा क्यों लगता है जैसे सबकुछ एकतरफा है। प्रेम का क्या अर्थ है तुम्हारे लिए केवल मर्जी इसमें तुम्हारी भावनाएँ मतलबी सी क्यों है और फिर जीवन भर साथ चलने की बात भी है
एक साथ दो विपरीत बातें कैसे हो सकती हैं ।
वो कौन सा हिस्सा है जो मेरी आँखे नहीं देख पा रही है मेरा मन नहीं समझ पा रहा है।
मैं खुद को कब तक तसल्ली देती रहूँ अपने ही सवालों के खुद ही जवाब देकर आखिर इस घेरे से तुम मुझे क्यों नहीं निकालते मुझे ही खुद को दिलासा देकर क्यों निकलना पड़ता है ।
कहो .....

Sunday, March 25, 2018


तरल हो जाना

सरलता से तरल हो जाना
सहजता को परिभाषित नहीं करता
उसी अपरिभाषित सहजता के साथ
तरल हो जाना चाहती हूँ

पात्र के अनुरूप ही
उनके किनारों में बिना कोई दाग बने
बिना उनके किनारों से छलके
आकार हो जाना चाहती हूँ

नहीं जाना चाहती तरलता के
उस सत्य से बाहर
जहाँ तृप्त होने की तृष्णा को
मरिचिका का आभास हो

रहना चाहती हूँ
उसी सत्य के अदृश्य तह में ही
जहाँ तृष्णा को भी
तृप्त होने का पूर्ण विश्वास हो


अनामिका चक्रवर्ती अनु