Sunday, April 28, 2019

उम्र के एक हिस्से में
दियासलाई रखी हुई थी
किसी रंगीन कपड़े में
लिपटी हुई जिदगी की तरह

आग किसी बारूद की शक्ल में
अपनी ही मादक गंध के
आकर्षण में डूबी थी
जो कपड़े की हर एक
सलवट में समाई थी

जलकर राख में ही
तब्दील हो जाना तय था
मगर जलने से पहले तपना था
किसी खरे सोने की तरह
ऐसा तपना मानों उम्र के हिस्से में रखी
दियासलाई की हर एक तिली
किसी उम्र की तरह जली हो
और रंग चटका हो इस तरह
जैसे डूबते हुए सूरज ने अपने
पंख फैला दिए हों आसमां के
आखिरी तारीख पर जाकर।


#अनामिका_चक्रवर्तीअनु



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