तुम्हारी बातें
जब बार बार एक व्यवहार पलट पलट कर आता है प्रेम के अच्छे व्यवहार के अंतराल में तो प्रेम कहीं ओझल हो जाता है।
ऐसा लगता है जैसे प्रेम कहीं है ही नहीं, था ही नहीं जो जी रहे थे अब तक प्रेम समझकर वो कुछ और ही था परन्तु क्या ? ये समझ नहीं आता कि क्या था हमारे बीच ।
अजीब कशमकश है अचानक से आया परायापन प्रेम को जैसे छीन लेता है।
यही है तो इस रिश्ते की सच्चाई क्या है वो कौन सी डोर है जो बाँधे हुए है। कौन सी तलब है जो मिटती नहीं बल्कि बढ़ती जाती है।
ऐसा क्यों लगता है जैसे सबकुछ एकतरफा है। प्रेम का क्या अर्थ है तुम्हारे लिए केवल मर्जी इसमें तुम्हारी भावनाएँ मतलबी सी क्यों है और फिर जीवन भर साथ चलने की बात भी है
एक साथ दो विपरीत बातें कैसे हो सकती हैं ।
वो कौन सा हिस्सा है जो मेरी आँखे नहीं देख पा रही है मेरा मन नहीं समझ पा रहा है।
मैं खुद को कब तक तसल्ली देती रहूँ अपने ही सवालों के खुद ही जवाब देकर आखिर इस घेरे से तुम मुझे क्यों नहीं निकालते मुझे ही खुद को दिलासा देकर क्यों निकलना पड़ता है ।
कहो .....
जब बार बार एक व्यवहार पलट पलट कर आता है प्रेम के अच्छे व्यवहार के अंतराल में तो प्रेम कहीं ओझल हो जाता है।
ऐसा लगता है जैसे प्रेम कहीं है ही नहीं, था ही नहीं जो जी रहे थे अब तक प्रेम समझकर वो कुछ और ही था परन्तु क्या ? ये समझ नहीं आता कि क्या था हमारे बीच ।
अजीब कशमकश है अचानक से आया परायापन प्रेम को जैसे छीन लेता है।
यही है तो इस रिश्ते की सच्चाई क्या है वो कौन सी डोर है जो बाँधे हुए है। कौन सी तलब है जो मिटती नहीं बल्कि बढ़ती जाती है।
ऐसा क्यों लगता है जैसे सबकुछ एकतरफा है। प्रेम का क्या अर्थ है तुम्हारे लिए केवल मर्जी इसमें तुम्हारी भावनाएँ मतलबी सी क्यों है और फिर जीवन भर साथ चलने की बात भी है
एक साथ दो विपरीत बातें कैसे हो सकती हैं ।
वो कौन सा हिस्सा है जो मेरी आँखे नहीं देख पा रही है मेरा मन नहीं समझ पा रहा है।
मैं खुद को कब तक तसल्ली देती रहूँ अपने ही सवालों के खुद ही जवाब देकर आखिर इस घेरे से तुम मुझे क्यों नहीं निकालते मुझे ही खुद को दिलासा देकर क्यों निकलना पड़ता है ।
कहो .....
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