Tuesday, July 18, 2017

तुम मिलना_

तुम मिलना मुझे 
उन रास्तों पर कभी
जहाँ से सब के गुजर जाने के बाद 
बहुत अकेला हो रास्ता
हम मिलकर बनेगे उसके पथिक।
तुम मिलना
उस स्वप्न में कभी,
जहाँ सिर्फ तुम
सत्य का शिलान्यास कर सको।
तुम मिलना
नदीं की उस धारा में कभी,
जहाँ चाँद बनकर मिल सको
जल के कण कण में।
तुम मिलना
देवताओं के उस संसार में कभी,
जहाँ वास हो तुम्हारा
आस्था का विश्वास के रूप में।
तुम मिलना
जीवन के उस अंतिम क्षण में कभी,
जहाँ मेरी मुक्ति के लिये
बन सको पवित्र शब्दों का उच्चारण ।



अनामिका चक्रवर्ती अनु
तुम मिलना_

तुम मिलना मुझे 
उन रास्तों पर कभी
जहाँ से सब के गुजर जाने के बाद 
बहुत अकेला हो रास्ता
हम मिलकर बनेगे उसके पथिक।
तुम मिलना
उस स्वप्न में कभी,
जहाँ सिर्फ तुम
सत्य का शिलान्यास कर सको।
तुम मिलना
नदीं की उस धारा में कभी,
जहाँ चाँद बनकर मिल सको
जल के कण कण में।
तुम मिलना
देवताओं के उस संसार में कभी,
जहाँ वास हो तुम्हारा
आस्था का विश्वास के रूप में।
तुम मिलना
जीवन के उस अंतिम क्षण में कभी,
जहाँ मेरी मुक्ति के लिये
बन सको पवित्र शब्दों का उच्चारण ।



अनामिका चक्रवर्ती अनु

Sunday, July 16, 2017

इंतज़ार_


इंतजार का एक एक लम्हा,
जब सूखे पत्तो सा पूरा झर जाता है।
तब बहार आती है
खुशी का रंग हरा हो जाता है
मैं हरे रंग के इंतजार में हूँ,
सूखे पत्तों की पनाह में



©अनामिका चक्रवर्ती अनु


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परिचय_
जीवन में तुम्हारा युँ बेधड़क आ जाना
न मुझे अचंभित करता है
न असहज लगता है,
मानो सदियों पुराना कोई परिचय
हम दोनों के बीच,
अब तक मौन औढ़े बैठा था।

©अनामिका चक्रवर्ती अनु


अर्द्धविराम

तुम्हें देर तलक़ निहारते हुए
ये सोचती हूँ मैं
पुरुष का कौन सा चित्र उकेरा हुआ देखूँ तुममें,

किस तरह करूँ तुमसे प्रेम, 
बाल्यावस्था में जाकर या प्रौढ़ावस्था में आकर 
या अपना संपूर्ण यौवन सौप दूँ तुम्हें प्रेम करते हुये।
कैसे ध्वस्त होगा रिक्त का तट,संपूर्णता में पू्र्ण होकर...


©अनामिका चक्रवर्ती अनु
स्वाद 

प्रेम एक ऐसा स्वाद है जिसे
जीभ नहीं चखती, मन चखता है
इसलिये हम प्रेम के आदी नहीं होते
उसके वशीभूत हो जाते हैं।
जहाँ उससे निकल पाने के सारे उपाय 
निरुत्तर होते हैं
क्योंकि वो भी प्रेम में होते हैं।

©अनामिका चक्रवर्ती अनु