स्वाद
प्रेम एक ऐसा स्वाद है जिसे
जीभ नहीं चखती, मन चखता है
इसलिये हम प्रेम के आदी नहीं होते
उसके वशीभूत हो जाते हैं।
जहाँ उससे निकल पाने के सारे उपाय
निरुत्तर होते हैं
क्योंकि वो भी प्रेम में होते हैं।
जीभ नहीं चखती, मन चखता है
इसलिये हम प्रेम के आदी नहीं होते
उसके वशीभूत हो जाते हैं।
जहाँ उससे निकल पाने के सारे उपाय
निरुत्तर होते हैं
क्योंकि वो भी प्रेम में होते हैं।
©अनामिका चक्रवर्ती अनु
वशीभूत होने की भी कोई शर्त है किया? या आकर्षण में सब जायज है।
ReplyDelete