Wednesday, January 31, 2018



जिन्दगी की टूटी ख़्वाहिशो से 
गुजरती हुई रातें
इतनी बारीक होती हैं

के बिना पलकें भिगोएं समेटी नहीं जाती

अंधेरा सर्द बनकर
इस कदर दिल में उतरता है
के पलकें दिल के बोझ से
सुबह फिर उठाई नहीं जाती

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अनामिका चक्रवर्ती अनु



7 comments:

  1. वाह, कितना कोमल अहसास ।

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  2. वाह, कितना कोमल अहसास ।

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  3. ब्लाॉग पर स्वागत है
    बेहद शुक्रिया

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  4. बहुत ही बेहतरीन कविता अनामिका जी

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    1. तहेदिल से शुक्रिया आपका संतोष जी

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  5. जिंदगी फिर भी चलती रहती है न ...😊

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  6. हां चलती रहती है है

    चलती का नाम जिन्दगी है
    जो रुक जाए तो मौत कहलाती है ☺️

    बहुत-बहुत शुक्रिया ब्लाॅग पर आने के लिए

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