तुम थे या नहीं, हो या नहीं
प्रश्न करती रही ।
विरान बंजर खंडहर ,
सदियों से कोई बसा नहीं जिसमें ,
गूँजी न हो कोई आवाज ।
या ऐसी कोई सड़क
लंबी दूरी तक जाते हुये कहीं
इस तरह थम गई,
जैसे उसके आगे कोई दुनियाँ ही नहीं है।
एक जला सा पन्ना,
जिसमें कुछ अक्षर नजर तो आये
पर कुछ कह नहीं पाये
जैसे वो खुद न जले ,
जली हो सिर्फ उनकी जुबान
मैं तुम्हारे होने को महसूस करती रही।
नदी किनारे सोई रेत की एक नदी ,
चट्टानों को निहारती हुई,
अपने सीने पर कदमों के चिन्ह संभालती हुई
मैं तुम्हें महसूस करती रही
तुम थे या नहीं ।
©अनामिका चक्रवर्ती अनु
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखती हैं
मैं साधारण पाठक हूँ,साहित्य का ज्ञान नहीं पर भावनाओं की अनुभूति मेरा हृदय कर लेता है।
बहुत बहुत आभार आपका
ReplyDeleteह्रदय से धन्यवाद आपका विमल जी