Sunday, October 8, 2017

धनुष
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तुम अपने धनुष जैसे होंठो की प्रत्यंचा से
छोड़ो एक बाण ऐसा प्रवल वेग से
जो भेद के हृदय को,
पुलकित कर दे उसका रोम रोम
मन ठहर जाए व्याकुल नदी की धार में
डब डब करती नाव सी
चूम ले नाविक अपनी पतवार को
पंचअमृत की अंजली सी
लगे किनारे बालू के कण कण से लिपटे
जैसे स्वप्न सर्प ने रची हो लीला
रति क्रीड़ा सी शीतल जल की आँच में
जल जल के जल हो जाए
तुम्हारे धनुष जैसे होंठो के
दोनों किनारों की छोर से
दृश्य हो उत्पन्न दृष्टि में
अभिराम कुटिल मुस्कान सी।

1 comment:

  1. वाह्ह्ह्ह बहुत सटीक 💐💐💐

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