अनुबन्ध से मुक्त
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भावनाएं कोमल हो और समय निष्ठुर,
तो चाहे कितना भी बचना चाहूँ
तुम्हें सोचने और न सोचने के बीच
शिव पर चढ़े हुए बहते पानी पर पैर पड़ ही जाता है
और पाप बोध से निकल जाती है जीभ काली की तरह
और फिर पैरों के गीले चिन्ह,
बार बार तुम्हें ही सोचने पर विवश हो जाते हैं
ये मन भी न, जरा सी नमी पर ही
दूब की तरह हरा हो जाता है।
और तब मैं जमा करती हूँ
दूब में से तीन पत्ती वाले दूब
क्योंकि देवता पर तो वही चढ़ाते है न
बेल पत्र के समान धतूरे के साथ
हाँ धतूरे के साथ ही उसके नील कंठ वाले पुष्प भी
क्योंकि ये जो तुम्हारे माथे पर शिव चिन्ह के तीन बल है न
इस पर अपनी तीन ऊँगलियों को आड़ा करके श्वेत चंदन संग भभूत तिलक करना है
और अपनी ऊँगलियों में बची भभूत को अपनी आँखों पर मलना है
इस भभूत से मेरी आँखों की ज्योति बढ़ जाएगी
फिर मैं खोज सकूंगी तुम्हारी विस्मयी सी आँखों में
तुम्हारे होने के अविरल रहस्य को
परन्तु रहस्य का भेद खुले ये न चाहूँगी
रहस्य का भेद बना रहे शिव के नीलकंठ की तरह
क्योंकि शिव का ये सौन्दर्य विषाक्त विष है
और नहीं चाहती मैं इस विष से स्वयं को मुक्त करना
इसलिए इसे नील पुष्प में परिवर्तित कर तुम्हें समर्पित करती हूँ
ताकि तुम पुष्प ग्रहण करो और मैं तुम्हारे दर्शन लाभ..
शांत ज्वालामुखी सा तुम्हारे चंचल मन का तांडव नृत्य
और कामदेव सा आकर्षण मन को विचलित न कर दे
इसलिए तुम रहस्यमयी बने रहो और मेरी खोज का तुम पर कभी अंत न हो
तो चाहे कितना भी बचना चाहूँ
तुम्हें सोचने और न सोचने के बीच
शिव पर चढ़े हुए बहते पानी पर पैर पड़ ही जाता है
और पाप बोध से निकल जाती है जीभ काली की तरह
और फिर पैरों के गीले चिन्ह,
बार बार तुम्हें ही सोचने पर विवश हो जाते हैं
ये मन भी न, जरा सी नमी पर ही
दूब की तरह हरा हो जाता है।
और तब मैं जमा करती हूँ
दूब में से तीन पत्ती वाले दूब
क्योंकि देवता पर तो वही चढ़ाते है न
बेल पत्र के समान धतूरे के साथ
हाँ धतूरे के साथ ही उसके नील कंठ वाले पुष्प भी
क्योंकि ये जो तुम्हारे माथे पर शिव चिन्ह के तीन बल है न
इस पर अपनी तीन ऊँगलियों को आड़ा करके श्वेत चंदन संग भभूत तिलक करना है
और अपनी ऊँगलियों में बची भभूत को अपनी आँखों पर मलना है
इस भभूत से मेरी आँखों की ज्योति बढ़ जाएगी
फिर मैं खोज सकूंगी तुम्हारी विस्मयी सी आँखों में
तुम्हारे होने के अविरल रहस्य को
परन्तु रहस्य का भेद खुले ये न चाहूँगी
रहस्य का भेद बना रहे शिव के नीलकंठ की तरह
क्योंकि शिव का ये सौन्दर्य विषाक्त विष है
और नहीं चाहती मैं इस विष से स्वयं को मुक्त करना
इसलिए इसे नील पुष्प में परिवर्तित कर तुम्हें समर्पित करती हूँ
ताकि तुम पुष्प ग्रहण करो और मैं तुम्हारे दर्शन लाभ..
शांत ज्वालामुखी सा तुम्हारे चंचल मन का तांडव नृत्य
और कामदेव सा आकर्षण मन को विचलित न कर दे
इसलिए तुम रहस्यमयी बने रहो और मेरी खोज का तुम पर कभी अंत न हो
©अनामिका चक्रवर्ती अनु
लाजवाब रचना ⚘💐⚘💐⚘
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