Saturday, February 10, 2018




'आसमानी 
----------------

चखना चाहती हूँ 
नीले आसमां को 

क्या वो भी होता होगा
समंदर की तरह खारा।

लहरे कभी मचलती होगी वहाँ भी
चाँद के तट पर बैठकर,
छूना चाहती हूँ लहरों को।

कोई संगीत तो वहाँ भी 
जरूर गुनगुनाता होगा।
नर्म रेत पर कोई ,
अपनें प्रेयस का नाम लिखता होगा।

अपनी उदासियों को सौंपता होगा
जाती हुई लहरों को।
जो छुप जाती है होगी चाँद के पीछे कहीं।

यादों को लपेटकर चाँदनी में ,
सीप का मोती बनाता होगा कोई।

खुद ही डूब जाऊँ
समंदर को बाहों में समेटकर 
नीले आसमां में कहीं।
या चखकर बन जाऊँ आसमानी।

हाँ ,एक बार चखना चाहती हूँ
नीले आसमां को ।

©अनामिका चक्रवर्ती 'अनु'
9/1/2015'

आसमानी 

चखना चाहती हूँ
नीले आसमां को

क्या वो भी होता होगा
समंदर की तरह खारा।

लहरे कभी मचलती होगी वहाँ भी
चाँद के तट पर बैठकर,
छूना चाहती हूँ लहरों को।

कोई संगीत तो वहाँ भी
जरूर गुनगुनाता होगा।
नर्म रेत पर कोई ,
अपनें प्रेयस का नाम लिखता होगा।

अपनी उदासियों को सौंपता होगा
जाती हुई लहरों को।
जो छुप जाती है होगी चाँद के पीछे कहीं।

यादों को लपेटकर चाँदनी में ,
सीप का मोती बनाता होगा कोई।

खुद ही डूब जाऊँ
समंदर को बाहों में समेटकर
नीले आसमां में कहीं।
या चखकर बन जाऊँ आसमानी।

हाँ ,एक बार चखना चाहती हूँ
नीले आसमां को ।


©अनामिका चक्रवर्ती अनु

9/1/2015

No comments:

Post a Comment