तुम
यूँ ही किसी बात पर हँसते हँसते
मेरा हाथ पकड़कर
अक्सर टिक जाती हो जब तुम मेरे कंधे पर
तुम्हारी हँसी से झरते हुए फूलों को
चुन लेना चाहता हूँ अपनी पलकों से
देना चाहता हूँ उन्हें एक सपना
तुम्हारे 'तुम' कहने पर
स्पर्श करना चाहता हूँ उन शब्दों को
जिसे मेरे लिये करती हो पूरा 'तुम' के संबोधन से
मैं शाम को डूबा हुआ देखता हूँ उदासी के
ग्रे कलर में
जब साथ मेरे होकर तुम कहीं और होती हो
तुम ढूँढती हो एक टूटते तारे को
जिसमें तुम्हारे सपनों का सच होना लिखा हो शायद
मगर उसी टूटते तारे से माँग लेना चाहता हूँ
तुम्हें मैं
तुम्हारे हँसते हुए लम्हों को हर पल तुम्हें देने के एक वादे के साथ
© अनामिका_चक्रवर्ती अनु
यूँ ही किसी बात पर हँसते हँसते
मेरा हाथ पकड़कर
अक्सर टिक जाती हो जब तुम मेरे कंधे पर
तुम्हारी हँसी से झरते हुए फूलों को
चुन लेना चाहता हूँ अपनी पलकों से
देना चाहता हूँ उन्हें एक सपना
तुम्हारे 'तुम' कहने पर
स्पर्श करना चाहता हूँ उन शब्दों को
जिसे मेरे लिये करती हो पूरा 'तुम' के संबोधन से
मैं शाम को डूबा हुआ देखता हूँ उदासी के
ग्रे कलर में
जब साथ मेरे होकर तुम कहीं और होती हो
तुम ढूँढती हो एक टूटते तारे को
जिसमें तुम्हारे सपनों का सच होना लिखा हो शायद
मगर उसी टूटते तारे से माँग लेना चाहता हूँ
तुम्हें मैं
तुम्हारे हँसते हुए लम्हों को हर पल तुम्हें देने के एक वादे के साथ
© अनामिका_चक्रवर्ती अनु
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