Saturday, February 10, 2018

तुम

यूँ ही किसी बात पर हँसते हँसते
मेरा हाथ पकड़कर
अक्सर टिक जाती हो जब तुम मेरे कंधे पर
तुम्हारी हँसी से झरते हुए फूलों को 
चुन लेना चाहता हूँ अपनी पलकों से
देना चाहता हूँ उन्हें एक सपना
तुम्हारे 'तुम' कहने पर 
स्पर्श करना चाहता हूँ उन शब्दों को 
जिसे मेरे लिये करती हो पूरा 'तुम' के संबोधन से
मैं शाम को डूबा हुआ देखता हूँ उदासी के 
ग्रे कलर में 
जब साथ मेरे होकर तुम कहीं और होती हो
तुम ढूँढती हो एक टूटते तारे को
जिसमें तुम्हारे सपनों का सच होना लिखा हो शायद
मगर उसी टूटते तारे से माँग लेना चाहता हूँ
तुम्हें मैं 
तुम्हारे हँसते हुए लम्हों को हर पल तुम्हें देने के एक वादे के साथ


© अनामिका_चक्रवर्ती अनु

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