Saturday, February 10, 2018

आँखों की भूख 

पेट की भूख 
जब आँखों में उतरने लगती है
तुम्हारे काँटे में फँसी 
मरी हुई मछलियाँ

तुम वापस पानी में छोड़कर,
ढूंढते हो
जिंदा मछलियाँ

उन्हें फिर मारकर खाने के लिए
भूख की आग में सेंक कर
अपने लोभ को पूरा करने के लिए

तुम्हारा यही स्वाभाव समाज में घुल गया
फिर तुम ढूंढने लगे
बार बार उन्हें शिकार बनाने को
कई बार

जिंदा मछलियों को फिर नये ढंग से
कांटे में फाँसने के लिए
भून कर खाने के लिए

तब भुनी हुई मछलियों से नहीं
तुम्हारे दोहरे चरित्र से बू आने लगी




©अनामिका चक्रवर्ती अनु

2 comments:

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ⚘💐⚘

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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