Saturday, February 10, 2018

अभी सिर्फ अंश ----
----------------------------------------------------------------------------------------------------
हमेंशा लगता है मैं इस जगह सदियाँ गुजार सकती हूँ क्योंकि शायद यही वो जगह है जहाँ मैं खुद से जी भर कर बातें कर सकती हूँ। खुद से मिल सकती हूँ।
सड़क पर चल रही मादक रौशनी में डूबी अनगिनत गाड़ियों और आसमान पर बिखरे अनगिनत रौशनी में भीगे तारो के बीच पच्चीसवें माले की इस खिड़की के सामनें
 एक शून्य मेरी तरह ही अंधेरे में डूबा हुआ है। वो भी खुद से यहीं मिलता है बातें करता है।
बहुत कुछ ऐसा होता है जो सिर्फ शून्य में ही हो सकता है। पर सांसे दोनो की चुप है तभी तो इतनी गहरी खामोशी छायी हुयी है।
और इस वक्त अगर सांसे कहीं चल रही है तो वो इस काॅफी मग से उठते हुये धुएँ में , वो भी जाने कब रुक जाएगी।
कितनी अजीब बात है आज से सात साल पहले जिसके लिए कितने लोग पागल थे और मैं भी पागाल थी और आज भी हो रही हूँ उसी के लिए मगर सिर्फ मैं अकेली ...
ये पागलपन भी कमाल का होता है ...
दीवाने थे जिस खुशबु के सब
उस परफ़्युम से अब मेरा दम घुटनें लगा है उसी से जैसे मेरे होठ मेरी जीभ मेरी हर सांस बदबुदार होते जा रहे है । भले ही उन आँखों में गजब का नशा है पर उसमें से अब प्यार की नहीं वासना की मारक्त गंध आने लगी है। नशा अब नोंचता है खून को पानी कर देता है ....
किसी से अलग रहकर ना जीने का डर साथ रहनें को कितना मुश्किल कर देता है कि खुद का जिस्म ही खुद में बोझ सा लगनें लगता है।

ओह ! काॅफी भी ठंडी हो गयी और मग भी मन का क्या कहूँ .....
सड़क पर मादक रौशनी अब भी रफ़्तार से दौडती गाड़ियों को चूम रही है ......


©अनामिका चक्रवर्ती अनु
20/2/2015

No comments:

Post a Comment