Thursday, February 1, 2018


स्त्री

मैं स्त्री हूँ,
इसलिए सजग हूँ।
मैं स्त्री हूँ,
इसलिए सहज हूँ।

मैं स्त्री हूँ,
इसलिए धैर्य हूँ।
मैं स्त्री हूँ,
इसलिए तृष्णा हूँ।

मैं स्त्री हूँ,
इसलिए प्रकृति हूँ।
मैं स्त्री हूँ,
इसलिए गर्भ हूँ।

मैं स्त्री हूँ,
इसलिए छाया हूँ।
मैं स्त्री हूँ,
इसलिए माया हूँ।


मैं स्त्री हूँ ,
इसलिए अम्बर हूँ
मैं स्त्री हूँ,
इसलिए धरा हूँ 

मैं स्त्री हूँ,
इसलिए सुंदर हूँ।
मैं स्त्री हूँ,
इसलिए शक्ति हूँ।

मैं एक स्त्री हूँ,
इसलिए तुम पुरुष हो।
तुम एक पुरुष हो,
इसलिए मैं स्त्री हूँ।
तुम और मै
हम हैं।
इसलिये जीवन है।



©अनामिका चक्रवर्ती अनु

8 comments:

  1. आप ही प्रेम हैं, आप ही माया हैं
    आप से वात्सल्यता, पेड़ की साया हैं
    दामन में जो समेट ले वो सुकून आप
    निस्वार्थ इस जीवन को कौन समझ पाया है

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  2. बेहद सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति 🌾⚘🌾

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका विमल जी

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    2. खूब लिखा अनामिका जी 😇 !

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    3. बहुत-बहुत शुक्रिया

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