प्रेम की गाँठों से
तुमने महीन धागा बनाकर मुझे
अपने ग़मो की तुरपाई कर ली
और हर तुरपाई के आखिर में
बाँध दी प्रेम की गाँठ
ताकि न कभी मैं उधढ़ूँ
न कभी तुम्हारे घाव खुलें
अपने ग़मो की तुरपाई कर ली
और हर तुरपाई के आखिर में
बाँध दी प्रेम की गाँठ
ताकि न कभी मैं उधढ़ूँ
न कभी तुम्हारे घाव खुलें
फिर भी चटक ही जाता है
कोई दर्द कभी कभी
जब स्मृतियों पर बादल गहरे हो जाते हैं
आता तो है दिल में कि
सिरे से धागे को निकाल दो
जब स्मृतियों पर बादल गहरे हो जाते हैं
आता तो है दिल में कि
सिरे से धागे को निकाल दो
मगर लगी हुई प्रेम की गाँठों से
घाव के गहरे होकर
दर्द के बढ़ जाने का भय भी बढ़ जाता है
तुम्हारे इस भय से
बढ़ जाता है मेरा भी भय
क्योंकि महीन धागों पर लगी गाँठें
कभी खुलती नहीं
टूटकर समाप्त हो जाता है
उनका अस्तित्व भी।
दर्द के बढ़ जाने का भय भी बढ़ जाता है
तुम्हारे इस भय से
बढ़ जाता है मेरा भी भय
क्योंकि महीन धागों पर लगी गाँठें
कभी खुलती नहीं
टूटकर समाप्त हो जाता है
उनका अस्तित्व भी।
©अनामिका चक्रवर्ती अनु
30/12/15
महीन धागों पर लगी गांठें कभी खुलती नहीं
ReplyDeleteटूटकर समाप्त हो जाता है उनका अस्तित्व...
हाए.... गांठ और टूटन के बीच की जिंदगी हो तो हो कैसी ? एक बार दिल धक करे, तो समझ में आए।
गांठ और टूटन के बीच जिंदगी इश्क़ की गिरफ़्त में होती है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया :)